Monday, September 5, 2011

साहिब मेरा एक है- कबिर


Kabir was great saint, poet and philosopher! His ability to explain the most complicated life philosophy through a daily life example made him reach to masses. In this poem of his, he is talking about importance of ‘Guru’, ‘Mentor’, ‘The master’. Kabir says, ‘My Master is only one, without a second, and if I see multiplicity, it is also from my Master alone.’ Just read all of his “Dohe’ in this post… Some which are just awesome are explained by us…



साहिब मेरा एक है



साहिब मेरा एक है दुजा कहाँ न जाये
दुजा साहिब जो कहूँ, साहिब खडा रसाये.



माली आवत देखके, कलिया करे पूकार
फुल-फुल चुन लिये, काल हमारी बार

(Seeing the Master Gardener, the buds whisper to each other:

Fully blossomed ones are plucked away, our appointed day is near.)



चाह गयी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह

(If cravings are dissolved, worries go, mind becomes free,
He who wants nothing is surely the king of all kings.)



हेत प्रीत सुन जो मिले, ता को मिलिये धाये,
अंतर राखे जो मिले
, तासे मिले बलाये


सब धरती कागद करु लेखनि सब बनराइ
सात समंदर की मसि करु हरि गुण लिखा न जाइ।

(If the entire earth is a writing tablet, all the forest be its pen,
all waters of seven seas be its ink – even then the Lord’s praises remain unfinished.)





अब गुरू दिल मे देखियाँ गावन को कछू नाही,
कबिरा जब हम गावते
, तब जाना गुरु नाही



मै लागा उस एक से एक भया सब माहि
सब मेरा मै सबन का
, तिहाँ दुसरा नाही


जा मरने से जग डरे मेरे मन आनंद,
कब मरहू कब पाऊ पुरण परमानंद

(The world trembles at the thought of death, but its a matter of joy for me,

When shall I die, when shall I find the perfect joy (of the vision of the Beloved)?)



सब बन तो चंदन नही, शूर के दल नाही,
सब समुंद्र मोती नही यूँ साधू जग माही



जब हम जग मै पग धरो, सब हसे हम रोये,
कबिरा अब ऐसी कर चलो पाछे हसी ना होये

(When you came to this mortal world, everyone around you were happy to see you and you were the only one weeping.

Kabir, now be in this world such that none laugh at your behind

but you yourself depart the world laughing, leaving all weeping mourning.)



अगुण किये तो बहू किये, करत ना मानी हार,
भावे बंदा बक्षे
, भावे गर्दन मार



साधू भुखा भाव का, धन का भुखा नाही,
धन का भुखा जो फ़िरे सो तो साधू नाही

(Having no appetite for material wealth, true saints are hungry only for love,

Those who thirst after material wealth are not saintly at all.)



कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर


करता था तो क्यूँ रहा अब काहे पछताये,
बोवे पेड बभूल का, आम कहासे खाये



साहिब सुन सब होत है, बन्दे ते कछु नाही,
राई ते परबत करे
, परबत राई माही



जियूँ तिल मै तेल है, जियूँ चकमक मै आग,
तेरा साई तुज़मे बसे
, जाग सके तो जाग

(Oil is found inside the sesame seed, inside Flintstone is fire, like that

Your Lord is within; now awaken to that truth if you dare!)



गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय


-संत कबिर




पाऊलचिन्हे


देव आहे- नाही ह्या वादात बरेच जणं जेव्हा अडकतात तेव्हा कुसुमाग्रज आपल्यातल्या आशावादाला देव मानतात आणि "त्याच" आस्तित्व दाखवातात. पहाटे अंधार दूर करून जो दिनकर आपल्याला प्रकाशाची पाऊलचिन्हे दाखवतो... तो देवच नाही का?



पाऊलचिन्हे



मी एक रात्री त्या नक्षत्रांना पुसले
परमेश्वर नाही घोकत मन मम बसले
पण तुम्ही चिरंतन विश्वातील प्रवासी
,
का चरण केदवा तुम्हास त्याचे दिसले



तो आहे किंवा नाही कुणा न लागे ठाव
प्रज्ञेची पडते जिथे पांगळी धाव
गवसे न किनारा, फिरे जरी दर्यात
शतशतकांमधुनी शिडे उभारून नाव!”



स्मित करून म्हणाल्या मला चांदण्या काही
तो मुक्त प्रवासी फिरत सदोदित राही
उठतात तमावर त्याची पाऊलचिन्हे
त्यांनाच पुसशी तू
, ’तो’ आहे की नाही!
-कुसुमाग्रज