(आस्वाद, गांवकरी, २४ जुन २०१२ रोजी प्रसिद्ध)
पहिला पाऊस। असे फक्त रम्य।
बाकीचे अगम्य। चिखलात॥
ऐकुनी फिर्याद। इंद्रही सुसाट।
टिव्ही सॅटेलाईट। बोंबलले॥
पावसाने आज। लावली हजेरी।
सारे कर्मचारी। पळताहे॥
पाऊस शिरला। फाईलच्या आत।
साहेब जोरात। शिव्या देई॥
मिटींगही मग। सुरू होई लेट।
भिजुनिया थेट। केबिनमधे॥
शेतकरी आज। झाले फार खुष।
सेन्सेक्सचा शोष। संपविला॥
फेसबुकवर। पाऊस कविता।
कमेंट्स सरिता। वाहतसे॥
म्हणू लागे पोर। पावसाळी बूट।
हवा रेनकोट। छोट्या भीमचा॥
भिजता एकत्र। मिठीत घेतले।
दोघे चिंब झाले। सरींवीण॥
अहाहा सुंदर। इंद्रधनू काय।
पहताना पाय। डबक्यात॥
खोटे आहे सारे। डोळ्यांचे पारणे।
पाकीट वाचणे। महत्वाचे॥
वॉटर पार्कवाले। ग्रासले दु:खाने।
रेन डान्स म्हणे। सुकलेले॥
वर्षा जरी ऋतू। काहींना मंगळ।
मुलांची चंगळ। नेत्रसुख॥
वाटू लागे कूल। श्रावणाची फेरी।
शंकराला घेरी। कुशावर्ती।।
पावसाचे रूप। पाहून मी दंग।
लिहीतो अभंग। स्वानंदाने॥
-
प्रथमेश किशोर पाठक
पहिला पाऊस। असे फक्त रम्य।
बाकीचे अगम्य। चिखलात॥
ऐकुनी फिर्याद। इंद्रही सुसाट।
टिव्ही सॅटेलाईट। बोंबलले॥
पावसाने आज। लावली हजेरी।
सारे कर्मचारी। पळताहे॥
पाऊस शिरला। फाईलच्या आत।
साहेब जोरात। शिव्या देई॥
मिटींगही मग। सुरू होई लेट।
भिजुनिया थेट। केबिनमधे॥
शेतकरी आज। झाले फार खुष।
सेन्सेक्सचा शोष। संपविला॥
फेसबुकवर। पाऊस कविता।
कमेंट्स सरिता। वाहतसे॥
म्हणू लागे पोर। पावसाळी बूट।
हवा रेनकोट। छोट्या भीमचा॥
भिजता एकत्र। मिठीत घेतले।
दोघे चिंब झाले। सरींवीण॥
अहाहा सुंदर। इंद्रधनू काय।
पहताना पाय। डबक्यात॥
खोटे आहे सारे। डोळ्यांचे पारणे।
पाकीट वाचणे। महत्वाचे॥
वॉटर पार्कवाले। ग्रासले दु:खाने।
रेन डान्स म्हणे। सुकलेले॥
वर्षा जरी ऋतू। काहींना मंगळ।
मुलांची चंगळ। नेत्रसुख॥
वाटू लागे कूल। श्रावणाची फेरी।
शंकराला घेरी। कुशावर्ती।।
पावसाचे रूप। पाहून मी दंग।
लिहीतो अभंग। स्वानंदाने॥
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प्रथमेश किशोर पाठक