Thursday, September 19, 2013

सूफ़ी दोहे

(Hazarat Amir Khusrau, one of the greatest poets India could have! A poet, musician, singer, philosopher and sufi saint of the 13th Century. )

·         खुसरो बाज़ी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।।

·         उज्ज्वल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान।
देखत में तो साधु है पर निपट पाप की खान।।

·         साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन।
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन।।

·         रैन बिना जग दुखी और दुखी चन्द्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैंन।। 

·         आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढाप तोहे दूँ।
न मैं देखूँ और न को, न तोहे देखन दूँ।|

-
अमीर ख़ुसरो

ऐ री सखी मोरे पिया घर आए

(A poem/ song beautifully illustrating the emotion of a married women whose husband has just returned from the other city and she is telling her friend the joy of re-union. )

ऐ री सखी मोरे पिया घर आए,

भाग लगे इस आँगन को।

बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के, चरन लगायो निर्धन को।

मैं तो खड़ी थी आस लगाए, मेंहदी कजरा माँग सजाए।

देख सूरतिया अपने पिया की, हार गई मैं तन मन को।

जिसका पिया संग बीते सावन, उस दुल्हन की रैन सुहागन।

जिस सावन में पिया घर नाहिं, आग लगे उस सावन को।

अपने पिया को मैं किस विध पाऊँ, लाज की मारी मैं तो डूबी डूबी जाऊँ।

तुम ही जतन करो ऐ री सखी री, मै मन भाऊँ साजन को।

-अमीर ख़ुसरो

बाबुल

(One of the best by Hazarat Amir Khsarau. A song sung by a daughter to her father asking ‘Why did you part me from yourself, dear fathe?’. Though this depicts sad emotions through its words, metaphors and examples used by Khusarau to express the emotions pierce into heart.)

काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे,
काहे को ब्याहे बिदेस।
भैया को दियो बाबुल महले दो-महले,
हमको दियो परदेस।
अरे, लखिय बाबुल मोरे,
काहे को ब्याहे बिदेस।
हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ,
जित हाँके हँक जैहें।
अरे, लखिय बाबुल मोरे,
काहे को ब्याहे बिदेस।
हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ,
घर-घर माँगे हैं जैहें।
अरे, लखिय बाबुल मोरे,
काहे को ब्याहे बिदेस।
कोठे तले से पलकिया जो निकली,
बीरन में छाए पछाड़।
अरे, लखिय बाबुल मोरे,
काहे को ब्याहे बिदेस।
हम तो हैं बाबुल तोरे पिंजरे की चिड़ियाँ,
भोर भये उड़ जैहें।
अरे, लखिय बाबुल मोरे,
काहे को ब्याहे बिदेस।
तारों भरी मैनें गुड़िया जो छोडी़,
छूटा सहेली का साथ।
अरे, लखिय बाबुल मोरे,
काहे को ब्याहे बिदेस।
डोली का पर्दा उठा के जो देखा,
आया पिया का देस।
अरे, लखिय बाबुल मोरे,
काहे को ब्याहे बिदेस।
अरे, लखिय बाबुल मोरे,
काहे को ब्याहे बिदेस।
अरे, लखिय बाबुल मोरे......

-अमीर ख़ुसरो