Thursday, September 19, 2013

ऐ री सखी मोरे पिया घर आए

(A poem/ song beautifully illustrating the emotion of a married women whose husband has just returned from the other city and she is telling her friend the joy of re-union. )

ऐ री सखी मोरे पिया घर आए,

भाग लगे इस आँगन को।

बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के, चरन लगायो निर्धन को।

मैं तो खड़ी थी आस लगाए, मेंहदी कजरा माँग सजाए।

देख सूरतिया अपने पिया की, हार गई मैं तन मन को।

जिसका पिया संग बीते सावन, उस दुल्हन की रैन सुहागन।

जिस सावन में पिया घर नाहिं, आग लगे उस सावन को।

अपने पिया को मैं किस विध पाऊँ, लाज की मारी मैं तो डूबी डूबी जाऊँ।

तुम ही जतन करो ऐ री सखी री, मै मन भाऊँ साजन को।

-अमीर ख़ुसरो

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