Wednesday, April 8, 2015

कतील शिफ़ाई

)
सारी बस्तीमे ये जादू नज़र आये मुझको
जो दरीचा भी खुले तू नज़र आये मुझको
)
जब तसव्वुर मेरा चुपके से तुझे छू आये
देर तक अपने बदने से तेरी खुशबू आये
)
सदियोका रत जगा मेरी रातों में आ गया
में एक हसीन शक्स की बातों में आ गया
)
रात के सन्नाटेंमें हमने क्या क्या धोखे खाये है
अपना ही जब दिल धडका हम समझे वो आये है
)
में घरसे तेरी तमन्ना पेहेन के जब निकलू
बरहना शेहेर मे कोई नज़र ना आये मुझे
)
वो मेरा दोस्त है सारे जहॉं को है मालूम
दगा करे वो किसीसे तो शर्म आये मुझे

फ़रहत शहजाद

)
उम्मीद है तो किसी रोज घर भी आयेगी
कभी तो धूप थकनसे शिकस्त खायेगी


) मुझे भी बेच गयी मसलीहत मोहब्बत की
उसे भी कोई जरुरत खरीद लायेगी


)मेरी झुकी हुई आँखे मेरी मोफब्बत है
तेरे सवाल पे वरना में लाजवाब नही


)कभी यू हो के पत्थर चोट खाये
ये हर दम आईनेही चूर क्यु है


)गमोंनें बाँट लिया है युँ आपस में
के जैसे में कोई लुटा हुआ खजाना था


)हजार नाम थे मेरे मगर में सिर्फ़ एक था
न जाने कब में मंदिरोमे मस्जिदोमे बट गया

सोचा नही अच्छा बुरा

सोचा नही अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नही
माँगा खुदासे रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नही

सोचा तुझे, देखा तुझे, चाहा तुझे, पूजा तुझे,
मेरी खता, मेरी वफ़ा, तेरी खता, कुछ भी नही

जिसपर हमारी आँखने मोती बिछाएं रातभर,
भेजा वोही काग़ज़ उसे, हमने लिखा कुछ भी नही


एक शामकी दहलीज़ पर बैठे रहे देर तक
आँखोसे की बातें बहोत मुँहसे कहा कुछ भी नही
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बशीर बद्र