Tuesday, March 22, 2011

अंतीम सच...

ऋतू की एक हिंदी कविता... कविता अपनी खुदकी नाद, लय और जुबान लेकर ही प्रगट होती है


अंतीम सच...

ये जिंदगी है... एसेही चलेगी...
कौन जाने?
कब, कैसे लेगी करवटे झुलती नदि्योंसी...
कुछ घर मनायेंगे मातम,
कुछ खुशियोंसे फुलेंगे,
कुछ जलायेंगे चिराग नयी दिशाके,
कुछ दिशाहिन हवाके झोंकोसे बेसहारा
हर किसी करवट पर...
अंतमे जाकर मिलेगी काल के सागरोको
अब जिंदगी भी मोहताँज है...
बंद हो जायेगी कोठडीमे...
जहाँ सुरज की रोशनी भी कभीकबार पोहोंचती है...
कोशीश करती रेहती है...

-ऋतू

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