Monday, April 22, 2013

जीने दे

आज फ़िर तनहा बैठा हू में
ये सोचके की बुलंदियोका दामन कब थामूँगा?
वो जोश बिखर गया ज़िंदगी के पल्को पे
वो ज़ज़्बा जो कभी हुआ करता था
सोचने को भी बचा कुछ नही, इतना सोचके भी क्या करें हम
मौत के तरफ हें अपने भी नक्षे कदम
आज मुझे जीने दे...

कल की याद अभी भी जवान है
उन पलों मै मुझे भी कुछ खूबी थी
साथ मै कुछ खामियाँ भी , उन्की भी याद ताज़ी है
चोट कुछ गेहेरे थे, कुछ अपनोके, कुछ परायें
राह भी दिखायी उन्ही तज़ुर्बोनें, आज शाम के यही खयाँलात है
फ़िर भी क्यूँ ये यादों की बरसात है इतनी तेज?
रहने दे मुझे,
आज मुझे जीने दे...

आएगी और भी ज़िंदगी, और काफ़ी कुछ देखना बाकी है
कुछ आरज़ू है जो अबतक नाकाम हैं, उनको भी पूरी करनी है
हक़ीक़त मेरी कुच सीमटी सी है तुझ में,
पर उसकी रहनुमायी भी ज़रूरी है
ख्वाब कई देखे हुए है मैने,
कुछ सोच के टुकडे, कुछ ज़रूरतें हैं

यकीन है खुदपे मुझे, के हासिल तो काफ़ी कर लूँगा मै
लेकीन ये ऐसा क्या थपथपाना, ऐ दिल
आज मुझे जीने दे...

- पार्थजीत


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