प्रथमऋतू- PrathamRutu
दोन मनस्वी कवींची.... एक काव्यमैफ़िल...
Monday, April 22, 2013
कुछ तो मजबुरीया रही होगी
कुछ तो मजबुरीया रही होगी
युहीं कोई बेवफ़ा नही होता
गुफ़्तगू उनसे करते है रोज़
मुद्दतो सामना नही होता
जी बहोत चाहता है सच बोले
क्या करे हौसला नही होता
रातका इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या क्या नही होता
-
बशिर बद्र
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