नहीं चुनी मैंने ये ज़मीन जो वतन ठहरी
नहीं चुना मैंने वो घर जो खानदान बना
नहीं चुना मैंने वो मज़हब जो मुझे बख्शा गया
नहीं चुनी मैंने वो जुबां जिसमें माँ ने बोलना सिखाया
और अब मैं इन सब के लिए तैयार हूँ
मारने मरने पर
फज़ल ताबिश
नहीं चुना मैंने वो मज़हब जो मुझे बख्शा गया
नहीं चुनी मैंने वो जुबां जिसमें माँ ने बोलना सिखाया
और अब मैं इन सब के लिए तैयार हूँ
मारने मरने पर
फज़ल ताबिश
he really has managed to capture the essense in just 47 words. amazing.
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