दूर तक आसमान नीला और धुला था
जिस वक्त सुबह ने आंखें खोलीं
घरों की मुंडेरों ने बताया... कुछ देर पहले बारिश हुई थी
किसी पत्ते पर ठहरी थी खूबसूरत बूंद
इंद्रधनुष की गोलाई लिए....धीरे से आगे बढ़ी
पत्ता हिला था हल्का सा... या उसका दिल धड़का था?
बूंद बही अपनी निशानी छोड़कर,
आखिरी सिरे पर जा टिकी...
फिर कहां रुकने वाली थी वो चंचल बूंद
पत्ता झुककर देखता रहा धरती की ओर...
मिट्टी में उसको मिलते हुए
पत्ते और भी थे शाख पर, सब चुप रहे
ये खेल देखकर हवा भी देर तक थमी रही
बारिश के बाद यही होता है अक्सर
ये जीवन का चक्र कहां रुकता है
हवा का नर्म झौंका है...
पत्ते ने मुस्कुराकर आसमान को देखा
सावन है...बारिश फिर होगी...
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